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Wednesday, January 14, 2009

बोअर युद्ध और गांधीजी

साम्राज्य विस्तार के क्रम में डच और अंग्रेज दोनों द. अफ्रीका पहुंचे। हौलैंड से पूर्णतः कट द. अफ्रीका में रच-बस चुके ये डच ही 'बोअर' कहलाये। अपनी भाषा व संस्कृति से जुडाव रखने वाले ये बोअर काफी कुशल योद्धा भी थे। द. अफ्रीका के अलग-अलग भागों में हिन्दुस्तानी डचों और अंग्रेजों दोनों ही के उपनिवेश में दुर्दशा भोग रहे थे।
द. अफ्रीका में हिन्दुस्तानियों पर जो आक्षेप लगाये जाते थे उनमें से एक यह भी था कि - "ये लोग द. अफ्रीका में केवल पैसे जमा करने आते हैं। देश पर यदि आक्रमण हो तो ये लोग हमारी थोडी भी मदद करने वाले नहीं हैं। उस समय हमें अपने साथ-साथ इनकी भी रक्षा करनी होगी।"
बोअर युद्ध इन आरोपों को निराधार साबित करने का अच्छा अवसर हो सकता था। इसलिए गांधीजी ने हिन्दुस्तानी कॉम का आह्वान करते हुए कहा- " द. अफ्रीका में हमारा अस्तित्व केवल ब्रिटिश प्रजाजनों के नाते ही है। यहाँ अंग्रेज हमें दुःख देते हैं, इसलिए अवसर आने पर भी यदि हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे तो यह हमारे मनुष्यत्व के लिए शोभा की बात नहीं है। इस अवसर को हाथ से जाने देने का मतलब होगा स्वयं उस आक्षेप को सिद्ध करना। प्रजा के नाते हमारा धर्म यही है कि युद्ध के गुण-दोषों का विचार किए बिना उसमें यथा शक्ति सहायता करें। "
थोड़े तर्क-वितर्क के बाद हिन्दुस्तानी समुदाय ने इस दलील को स्वीकार कर लिया। इन्हे युद्ध का प्रशिक्षण तो था नहीं, इसलिए कुछ मुख्य लोगों ने घायलों और बीमारों की देख-रेख की तालीम ली और सरकार से युद्ध में जाने की अनुमति मांगी। इसका सरकार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा, किंतु उस समय ये मांगें स्वीकार नहीं की गयीं। बाद में जब बोअरों की शक्ति बढती गई तो एम्बुलेंस कोर के रूप में इनकी सेवाएं स्वीकार की गयीं।
इस अकल्पनीय भागीदारी के चलते जिन अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानी -विरोधी आन्दोलन में भाग लिया था, उनके भी ह्रदय पिघला दिए। सरकार की और से एम्बुलेंस कोर के ३७ नेताओं को युद्ध पदक भी दिए गए।
निःस्वार्थ सेवा से शासकों का अपने प्रति ह्रदय परिवर्तन के प्रयोग का विश्व इतिहास में यह एक अभूतपूर्व उदाहरण है, जो वर्तमान सन्दर्भ में न सिर्फ़ हमारे देश बल्कि वैश्विक परिदृश्य में भी पूर्णतः प्रासंगिक है।

5 comments:

  1. उत्तम प्रयास है आपका . इसे जारी रखे

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  2. bahut accha lekh likha hai aapne.

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  3. गांधी जी पर लिखी जा रही श्रृंखला जानकारियों से भरी है. साधुवाद.

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  4. बहुत अच्छी कोशिश है. आपका लेख गाँधी जी के बारे में पढ़ के अच्छा लगा, बधाई.

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